मनोरमा माधवी की सहेली है। बहुत दिनों से उसने मनोरमा को कोई पत्र नहीं लिखा था। अपने पत्र का उत्तर न पाकर मनोरमा रूठ गई थी। आज दोपहर को कुछ समय निकालकर माधवी उसे पत्र लिखने बैठी थी। तभी प्रमिला ने आकर पुकारा, ‘बड़ी दीदी।’ माधवी ने सिर उठाकर पूछा, ‘क्या है री?’ ‘मास्टर साहब का चश्मा कहीं खो गया है, एक चश्मा दो।’ माधवी हंस पड़ी, बोली, ‘जाकर अपने मास्टर साहब को कह दे कि क्या मैंने चश्मों की कोई दुकान खोल रखी है?’ प्रमिला दौड़कर जडाने लगी तो माधवी ने उसे पुकारा, ‘कहा जा रही है?’ ‘उनसे कहने।’ ‘इसके बजाय गुमाश्ता जी को बुला ला।’