पंडित जी को दोपहर में सोने की आदत नहीं थी। गर्मियों की अलस दोपहरी में जब मुहल्ले की गलियों में खर्राटे गूँज रहेे होते तो पंडित जी किसी न किसी काम में जुटे होते। दोपहर में सोने से उन्हें सख़्त चिढ़ थी। गर्मियों में वह घड़ी भर के लिए लेट भी जाते थे, पर बारिश की उमस में सोना उनके लिए असंभव बात थी। एक दिन वह पुस्तकों की अलमारी साफ करने में जुटे हुए थे। तभी दरवाजे़ पर दस्तक हुई। धूल और पसीने से अँटे हुए पंडित जी ने अनमने ढंग से दरवाज़ा खोला तो सामने पोस्टमैन खड़ा था।