बाल रूप बड़ा ही चंचल और अस्थिर होता हैं भावनाओं की इस पड़ाव पर कोई एक दिशा नहीं होती क्षण भर मे माँ से रूठ जाता हैं और अगले ही क्षण माता की ममता का प्यासा कभी तो धीट हठी तो कभी परम दयालु जब हम स्वम के बाल काल के परम आनंद का पुनः आभास करते हैँ तो लगता हैँ वो काल किसी और ही संसार मे बिता थाभोजन करने की आवश्यकता तो ज्ञात होती थी किन्तु उसके आने की चिंता बनाने की चिंता का दूर दूर तक कोई ज्ञान ना था यदि किसी मित्र के माता पिता ने उसको