शैलेन्द्र चौहान उनके हाथों में जब-तब एक लॉलीपॉप रहता।अक्सर तो वे अपने हाथों का उपयोग कुछ लेने के लिए ही करते थे परंतु जब भी वे अपने आसपास किसी भोले-भाले शरीफ़ आदमी को देखते तो उनके हाथ में एक लॉलीपॉप नाचा करता। उस समय वे अपने व्यवहारिक ज्ञान की कुशलता का बहुत ही शानदार परिचय देते। वे उस व्यक्ति की आँखों में झाँकते और मुस्कराते। और तब तक मुस्कराते रहते जब तक कि उस आदमी की आँखों में लॉलीपॉप की झलक न पा लेते। फिर धीरे से वे अपनी मुट्ठी बंद कर लेते, लॉलीपॉप मुट्ठी में बंद हो जाता। अब