रंभा ने गोबर के ढे़र में पानी का छींटा मारकर सींचा और उन्हें सानने के लिये अपने दोनों हाथ उसमें घुसेड़ दिये। घिन बर आई, पिछले कुछ वर्षों में ये सब काम करने की आदत कहाॅँ रह गई है? हिचक होती है.... अब इ सब मोटा काम करने में। स्वभाव में महीनी आ गई है। गोइठा पाथना, आंगन लीपना, घर पोतना, जाॅँत में दाल दरना, ओखली में चिउड़ा कूटना... अब इ सब रंभा से कहाँॅ सपरता है, अब तो बिजली न रहने पर, मसाला भी इनवरटर से मिक्सी चला कर पीस लेती है, उ त अम्मा पकड़ ली चोयंटा जैसे - डाॅक्टर बाबू हैं नहीं तो का खाली घर में भूत सा डोलती है, आकर हमार कुछ काम करवा दे। सो चली आयी है अम्मा का हाथ बटाने।