शुरूआत

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नेहा ज्यों ही लाइब्रेरी में दाखिल हुई, कोई आंधी की तरह उस से टकराते-टकराते बचा, ’’ सुनिए आप ने ’’ ’मैडम बावेरी’ इष्यू करवाई है क्या? आप शायद हफ्ते भर से ...........’’ कहते - कहते प्रभात रूका शायद उसे इस तरह एक अपरिचत लड़की से बात करने पर अटपटा लगा. पर अपनी उस झेंप को जाहिर करने से ज्यादा महत्वपूर्ण उसे ’मैडम बावेरी ’ को हासिल करना लग रहा था, जिसे लाइब्रेरियन के अनुसार ’ इन मोहतरमा ने पिछले एकडेढ़ हफ्ते से इष्यू करा रखा था। प्रभात एक अरसे से इस किताब को पढ़ना चाहता था। अब जा कर इस लाइब्रेरी में इसकी एकमात्र प्रति उपलब्ध हुई भी तो यह साहिबा इसे लेकर गायब थीं। ’’देखिए, अगर आप ने पढ़ ली हो तो प्लीज .....’’ प्रभात ने भरसक अपनी आवाज को संयत रखने की कोषिष की । लेकिन उसके लहजे से उसकी खीज प्रकट हो ही गई।