मोबले शाम तक अस्पताल में रहे। उन्हें देखने कोई नहीं आया, अलावा आतिश जी के। उन्हें आधे घंटे बाद ही ख़बर हो गई थी। फौरन भागे आए। हालाँकि उन्हें अख़बार के लिए एक ज़रूरी रिपोर्ट तैयार करनी थी। समय भी कम था। लेकिन सुना तो रहा न गया। अपने सहायक को काम पकड़ाकर दौड़े आए। सोचा था मुहल्ले से कोई न कोई आ ही जाएगा। उसके आते ही वह लौट आएँगे। पर इसी प्रतीक्षा में दिन बीत गया और कोई न पहुँचा।