नतीजा फिर भी वही…ठन्न…ठन्न…गोपाल

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नतीजा फिर भी वही- ठण ठण गोपाल ट्रिंग…ट्रिंग….ट्रिंग…ट्रिंग… “ह्ह….हैलो…श्श….शर्मा जी?” “हाँ।…जी….बोल रहा हूँ…आप कौन?” “मैं…संजू।” “संजू?” “जी।….संजू…..पहचाना नहीं?...राजीव तनेजा की वाइफ।” “ज्ज…जी भाभी जी….कहिये…क्या हुक्म है मेरे लिए?…..सब खैरियत तो है ना?” “अरे।…खैरियत होती तो मैं भला इतनी रात को फोन करके आपको परेशान क्यों करती?” “अरे।…नहीं…इसमें परेशानी कैसी?…अपने लिए तो दिन-रात…सभी एक बराबर हैं….आप बस…हुक्म कीजिए।” “तुम कई दिनों से इन्हें छत्तीसगढ़ आने का न्योता दे रहे थे ना?” “जी।…दे तो रहा था लेकिन….” “लेकिन अब मना कर रहे हो?” “न्न्…नहीं।…मना तो नहीं कर रहा लेकिन मौसम थोड़ा और खुशगवार हो जाता तो….” “तब तक तो मैं ही मर