माँ से ही मायका होता है

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कब्रें विच्चों बोल नी माए दुःख सुःख धी नाल फोल नी माए आंवा तां मैं आमा माए आमा केहरे चावा नाल माँ मैं मुड़ नहीं पैके औणा पेके हुंदे माँवा नाल। सुरजीत बिंदरखिया का यह गीत हस्पताल के जनरल वार्ड से स्पेशल रूम की खिड़की से होता हुआ सुखवंत के कानो में भी पड़ रहा था। शायद किसी की मोबाईल फोन की रिंग टोन थी। दवाइयों के नशे से ज्यादा हिल तो नहीं पा रही थी लेकिन चेतना तो पूर्ण रूप से थी।