हंस में प्रकाशित स्कूटर की चाबी पकड़ाते समय उसकी अंगुलिओं के बढ़े हुए सुडोल नाखून उसकी हथेली पर छू गए थे. झटका सा लगा जैसे. सारा बदन झनझना उठा. भीतर तक काँप गया. नीचे झुके उसके चेहरे को देख रहा था.... गोरा रंग, घुंघराले चमकते ताज़ा शैम्पू किये महकते बाल, माथे के आस-पास की हल्की पतली लटें चेहरे और आँखों पर झूल झूल जातीं. कानों में नए फैशन की बालियाँ. गले में इमीटेशन गर्नेट्स..... यहीं तक देखा था कि उसकी अँगुलियों के नाखून उसकी हथेली पर छू गए और वो झनझना उठा था. उमंग भैया ... देखिये तो क्या हो गया है? कल शाम को स्कूटर स्टार्ट ही नहीं हुआ. अभी कॉलेज जाना है..... नाम के साथ लगा भैया शब्द समझा गया कि आस-पास है. अकेले में नीतू उसे सिर्फ उमंग कहती है और शायद इसी बहाने बहुत कुछ कहना-सुनना हो जाता है. लेकिन फर्स्ट इयर के नीतू और एम्. कॉम. फाइनल के उमंग के बीच ऐसी-वैसी कोई बात नहीं है.