अलख निरंजन

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“अलख निरंजन” "अलख निरंजन!…बोल. ..बम...चिकी बम बम….अलख निरंजन....टूट जाएँ तेरे सारे बंधन" कहकर बाबा ने हुंकारा लगाया और इधर-उधर देखने के बाद मेरे साथ वाली खाली सीट पर आकर बैठ गया|“पूरी ट्रेन खाली पड़ी है लेकिन नहीं…सबको इसी डिब्बे में आकर मरना है”बाबा के फटेहाल कपड़ों को देखते हुए मैं बड़बड़ाया|“सबको, मेरे पास ही खाली सीट नज़र आती है। कहीं और नहीं बैठ सकता था क्या?” मैं परे हटता हुआ मन ही मन बोला |“कहाँ जा रहे हो बच्चा?” मेरी तरफ देखते हुए बाबा का सवाल |“पानीपत”मेरा अनमना सा संक्षिप्त जवाब था |“डेली पैसैंजर हो?”…“जी!…..(मेरा बात करने का मन नहीं हो