इंद्रधनुष सतरंगा - 15

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मुहल्ले की ख़ुशियों को जैसे ग्रहण लग गया। लोग हँसना-मुस्कराना भूल गए। हँसी-मज़ाक़, चुहल-ठिठोली जैसे बीते ज़माने की बात हो गई। लोग एक-दूसरे के सामने पड़ने से कतराने लगे। एक-दूसरे को देखकर राह बदल देते। हमेशा गुलज़ार रहने वाला मुहल्ला सुनसान हो गया। लोग दरवाजे़ बंद करके अपने आप में सिमट गए। दूसरों के सुख-दुख से आँखें फेर लीं।