आखर चौरासी - 32

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जिस समय विक्की अपना सफर पूरा कर बस से उतरा, दोपहर ढल चुकी थी। वैसे भी ठंढ के मौसम में दिन छोटे होते हैं। शाम गर्मियों कि अपेक्षा जल्द उतर आती है। बस स्टैंड से पहले अपने घर जाने के बजाय वह सीधे गुरनाम के घर की ओर बढ़ गया। रास्ते में जब उसने सतनाम भैया की जली दुकान देखी तो ठिठक कर रुक गया। दुकान की दीवारें और छत्त पूरी तरह जल कर काली हो चुकी थीं। दुकान के सामने वाला छज्जा तोड़ डाला गया था। दरवाजे खिड़कियाँ पूरी तरह जल कर ख़ाक हो गए थे। दरवाजे खिड़कियाँ नहीं होने के कारण सड़क से ही भीतर के खाली-खाली कमरे साफ नजर आ रहे थे।