आखर चौरासी - 28

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अभी सतनाम बाहर वाले गेट तक ही पहुँचा था कि सामने से ग्वाला आता नज़र आया। सतनाम वहीं रुक गया। ग्वाले ने उसे डोल पकड़े देखा तो सब समझ गया। वैसे भी आज उसे काफी देर हो गयी थी। ‘‘क्या बताएं सतनाम बाबू, आज भैंस ही नहीं लग रही (दूध दे) थी। दूध दुहने में बहुत कुबेर (देर) हुई गवा।’’ ग्वाले ने स्पष्टीकरण दिया। ‘‘अच्छा, अच्छा आ जाओ। मैंने सोचा शायद तुम ना आओ, इसीलिए स्वयं तुम्हारे पास जा रहा था।’’ सतनाम ने बताया।