आखर चौरासी - 27

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नवम्बर की उस ठंडी रात के अंधेरे में पेंसिल टॉर्च की रोशनी में हॉस्टल के पिछवाड़े की तरफ फूलों की क्यारियों से होकर अपना रास्ता बनाता जगदीश गुरनाम की खिड़की तक जा पहुंचा। उसने आहिस्ते-से खिड़की पर दस्तक दी। भीतर से गुरनाम ने बड़ी सावधानी से ज़रा-सी खिड़की खोली। ‘‘लाओ पॉलिथिन मुझे पकड़ाओ ।’’ जगदीश फुसफुसाया। गुरनाम ने पॉलिथिन को पुराने अखबार में लपेट कर पैकेट-सा बना दिया था। वह पैकेट जगदीश को थमाते हुए उसकी हिचकी निकल गई। आँसुओ से उसकी आँखें डबडबायी हुई थीं।