दोस्त की संघर्ष भरी जिंदगी। (1)रघुनाथ नहा धोकर अपनी स्त्री को आवाज लगता हुआ बोला - अरे सुनो देवी मैं जरा बाहर उध्यान तक टहलकर आता हूँ ।इन्दिरा अपना बेग लेकर कमरे से बाहर आई ओर रघुनाथ की तरफ देखकर बोली कुछ खा लेते। फिर निकलो, ना जाने कितना समय लग जाए वापिस लोटने मे।रघुनाथ अपनी पत्नी की तरफ देखता हुआ बोला - देवी मैं उध्यान तक जाकर लौट रहा हूँ । कही दूर नही जा रहा हूँ ।इन्दिरा नाक सकुडती हुई बोली - हाँ भगवान जानती हूँ। पिछले बिस सालों से आपको उध्यान तक जाकर आता हूँ। ये कहते हुए