बचपन में जब भी मैं मां के उम्मीद से ज्यादा पैसा खर्च करता तो मेरी हमेशा एक कहावत कहा करती थी 'दिन के आरे बारे और रात के दिया बारे ' । जिसका अर्थ होता है घर में चूल्हा जलाने का औकात नहीं और शहर में भंडारा करने की बात करना। इस कहावत पर एक कहानी याद आती है।पिताजी उसके किसी अमीर आदमी के लिए ड्राइवर का काम करते थे। उनके तनख्वाह से उसकी कॉलेज की फीस और घर में दो वक़्त की रोटी नसीब हो जाती थी। शुरुवात तो ठीक -ठाक रहा लेकिन वक़्त के साथ साथ बेटे को