आखर चौरासी - 12

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झटके से जगीर सिंह की आँख खुल गई। उसका दिल बुरी तरह धड़क रहा था। सारा बदन पसीने से सराबोर था। काफी देर तक वे ‘वाहे गुरु... वाहे गुरु’’ का जाप करते रहे। रात आधी बीत चुकी थी। बिस्तर पर बेचैन करवटें बदलते-बदलते न जानें उन्हें कब नींद आ गई। लेकिन इस बार भी वे ज्यादा देर तक नहीं सो सके। आँख लगते ही एक नया दृष्य उनकें अवचेतन पर छाता चल गया था.....। नई दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास में एक ओर को जाती हुई प्रधानमंत्री के सामने उनके ही दो सिक्ख अंगरक्षक तन कर खड़े हो गये। उन दोनों के हाथों में थमे हथियार भी तन चुके थे। पलक झपकने से भी पूर्व वे हथियार आग उगलने लगे। पल भर में प्रधानमंत्री का खून से लथपथ, गोलियों से छलनी शरीर नीचे गिरा पड़ा था। चारों तरफ खून ही खून नज़र आ रहा था।