“अरे मत पूछो यार, वह बहुत घटिया आदमी था...” एक भला आदमी दूसरे भले आदमी से रात्रि के यही कोई पौने नौ बजे दक्षिणी दिल्ली के एक बस-स्टैंड पर बैठा अपनी टाँगें झुलाते हुए और मूँगफली के छिलके यत्र-तत्र फेंकते हुए यह ‘शास्त्रीय चर्चा’ कर रहा था। तभी दूसरे भले आदमी ने कहा, “बॉस, उसके कारण ही हमदोनों को आज यह दिन देखना पड़ रहा है। उसी ने हमारा ट्रांसफर यहाँ कराया। जब से उसका हमारे जीवन में प्रवेश हुआ तब से अपनी ग्रह-दशा पूरी की पूरी बदल गई। पुराने ऑफिस में इसने रहने न दिया और नए ऑफिस में यह नया ‘कनखजूरा’ आ गया। नहीं तो क्या ठाठ से अपनी नौकरी चल रही थी।”