लबरी

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“लबरा लबरी चले बाजार...लबरा गिरा बीच बाजार, लबरी बोली खबरदार...” माला कुमारी ने जिस घड़ी गांव जाने के बारे में सोचा था तभी से कान में एक ही धुन बज रही थी..। स्मृतियों की रील बेहद मोहक होती है। जब चलती है तो वर्तमान हाशिए पर चला जाता है और समूचा व्यक्तित्व अदृश्य अंधेरे में लिपट जाता है। रौशनी के जाले में साफ साफ देख सुन सकते हैं। माला के साथ भी यही हो रहा है। माला उसी मोहक रील की जादुई गिरफ्त में है। सामने जो बंदा बैठा है, कुछ देर के लिए वह लोप हो गया।