इंद्रधनुष सतरंगा - 11

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‘‘साहब, यह देखिए, असली सूती क़ालीन। सबसे महँगा। विलायत में बड़ी क़ीमत में बिकता है।’’ बानी कर्तार जी को अपने क़ालीन दिखा रहा था। ‘‘सचमुच, बड़ा सुंदर है!’’ कर्तार जी उसे छूकर देखते हुए बोले। ‘‘इसमें गुन भी बहुत हैं, साहब। जब इसे फर्श पर बिछाएँगे इसकी ख़ूबियाँ तब पता चलेंगी। हर मौसम में आरामदायक है--जाड़ा हो या गर्मी। रंग भी पक्का है। ऊनी क़ालीन दिखने में भले ही चमक-दमक वाले होते हैं, पर गर्मियों में तकलीप़फ़ देते हैं।’’