दिया की कलम से इश्किया

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तुझे भूलाकर अब...तेरी यादों से निकलकर अब, में खुदमे खोना चाहती हूं तुझे भूलाकर अब ,में खुद को पाना चाहती हूं। चल जब गिनवा ही दी है तूने मुझ को कमिया मेरी तो बिछड़कर तुझसे अब, में उन्ही कमियों को भरना चाहती हूं, तेरे लिए नहीं , अब, में खुद के लिए बदलना चाहती हूं।जागी ये आंखे कितनी बार तेरे लेट रिप्लाई और तेरे कॉल के इंत्तजार में,इन आंखो को अब मीठे सपनों की एक जपकी देना चाहती हूं,तुझे भूलाकर अब में खुद को पाना चाहती हूं।की थी जरा सी उम्मीद - ए वफा तुझसे मैने , बदले में अपने