जिंदगी के रंग खुशियों के संग

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प्राची ने टिफ़िन पैक किया, बैग उठाया और ऑफिस के लिए निकल पड़ी। आजकल वैसे भी घर में उसका मन नहीं लगता है। दस महीने पहले तक वह बहुत व्यस्त रहती थी। सुबह से चक्करघिन्नी बनी घूमती, घर आवाज़ों से गूँजता रहता था... एक तरफ पिताजी की आवाज़ आती.. "पुच्चू! बेटा मेरा चश्मा कहाँ रखा है...""जिज्जी आज टिफ़िन में क्या बना दूँ...?" भाभी रोज पूछती थीं।"बुई आज मूवी चलेंगे, 'स्त्री' लगी है पीवीआर में..." भतीजी उससे दस साल ही छोटी थी, तो दोनों में दोस्ती ज्यादा थी।"गुड़िया! आज शाम को कला संगम में प्रदर्शनी देखने चलेंगे, ऑफिस से जल्दी