अकेली नहीं हूँ मैं

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कभी कभी छोटी सी है तो कभी हद से ज़्यादा, कभी चाँद लम्हो की है तो कभी वर्षों पुरानी. क्यों होती है ये घुटन. क्यों ये दिल अरमान रखता है. क्यों ये दिल कुछ मांगता रहता है. क्यों नहीं ये वैसा करता जैसा बोला जाता है. ख़ुशी के कुछ पल खो से जाते हैं जब ढेर साड़ी घुटन दिल में घर कर गयी हो. काश मैं स्वार्थी न होती. काश ये मैं मशीन होती जिसको जो बोला जाता वो ही होता. काश मेरे अरमान ना होते. काश मैं प्यार की तलाश में ना होती. काश मैं खुद को जान पाती,