शायद यही वजह है कि मुम्बई की जीवन रेखा कही जाने वाली लोकल ट्रेन चौबीसों घंटे में से कभी भी खाली नहीं मिलती प्रत्येक प्रहर अलग-अलग तरह की भीड़ ट्रेन में सफ़र करती नज़र आती है सुबह शाम दफ़्तर के कर्मचारियों और विद्यार्थियों की भीड़, दोपहर को शॉपिंग, बिज़नेसवालों को रात को फिल्मी दुनिया में संघर्ष करने वालों,