अल्हड़

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तेज छिटकती बिजलीबादलों की गडगडाहटहवा के झूले पर डोलतीवारिस की बूंदें आ बैठती हैचेहरे पर।जलकणों से भीगता रोम रोम और सांसेंउतावली।बार बार तेज चमक से चौंकचुंधियाती आंखें मूंद जाती हैं बरबसमूंदी आंखों के झरोखों में सज गयी हैंवरषों की यादें जो ढंकी थी अरसों सेजलबूंदों से सिंचित सजीव हो गयी हैं।फैलने लगे हैं हाथछूने को बिछरे हाथ।भींगी रात की गहराई से झांकतीउमंगों भरी हंसीमचल जाता है बाहों में समाने कोबावली।2जीवन जागरणनित पूरब से पश्चिम तक आता जाता सूरज,मानव को जगा जगा कर उर्जा देता सूरज ,सदियों से प्रभात जागरण दुहराता है।जीवन में भरने उल्लास निस दिन आता है ।रे मनुष्य