पतीली से गिलास में चाय छान कर सबको थमा आई थी पर मुकेश कहीं नहीं दिख रहा था, वह उसको ढूँढ़ती हुई बाहर कोठरी की ओर चल दी, “बाबू !” आवाज लगाई उसने, कोठरी का किवाड़ उड़का था, धक्का दे कर भीतर आ गई.. अभी तक सो रहे थे बाबू “का जी ! आप अभी तक सो रहे हैं..चलिए उठिए..घाम माथे पर चढ़ गया है.. ” कुनमुना कर करवट बदल लिया उसने, .