जैसे तैसे मैं धीरे धीरे चलती ट्रेन मे भागते भागते एक सज्जन की मदद से चढ़ गया लेकिन ट्रेन मे घुसते ही ये एहसास हुआ कि एक जंग अभी और बाकी है जो सीट के लिए करनी है, जी हां पहली जंग तो टिकट ले कर जीत ही ली थी वरना आज कल ट्रेन की टिकट लेना आसान नहीं, बहुत भीड़ थी ट्रैन मे, लोकल डिब्बे मे अक्सर होती है, जैसे तैसे मै खड़ा तो हो गया पर नज़र चारों ओर सीट तलाश रही थी, भीड़ इतनी की मोबाइल निकालने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता l हमेशा की तरह मैं