(१) मैं तो बस इतना चाहूँ हाँ मैं बस कहना चाहूँ,हाँ मैं बस लिखना चाहूँ,जो नभ में थल में तारों में,जो सूरज चाँद सितारों में। सागर के अतुलित धारों में,और सौर मंडल हजारों में,जो घटाटोप आँधियारों में,और मरुस्थल बंजारों में। परमाणु में जो अणुओं में,जो असुर सुर नर मनुओं में,देवों के कभी हथियार बने,कभी बने दैत्य भी वार करे। जो पशु में पंछी नील गगन,मछली में जो है नीर मगन, जो फूल पेड़ को पानी दे,कि मूक-वधिरों को वाणी दे। जिससे अग्नि लेती अंगार,सावन अर्जित करे फुहार,श्वांसों का जो है वायु प्राण,मन में संचित अमर ज्ञान। जिससे रक्त की बहे धार,वो