गजल - वतन पर मिटने का अरमान

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" गरीब हूँ साहब" **************************"भीगे हुए अरमान आज रोने को है|मत रोको गरीबी को, पेट के बल भूखा मानव अब सोने को है"||"वक्त गुजर गए इंसान फरिश्ता न बन सका|रिश्ता खो गया कहीं, इंसानियत ताख पर है"|| आज भी हम चना चबेना खाकर, रात गुजार लेते हैंपलीते तो आजादी के बाद भी पीछा न छोड़ सके|| वतन पर मिटने का अरमान ************************हम देश के है ंशान, हमारी आन, हमारी बान, देश की माटी पर सब कुछ है