आई. सी. यू. में पृथ्वी

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"आई0 सी 0 यू 0 में पृथ्वी"आर 0 के0 लाल आधी रात में एक बार जब धारासार वृष्टि, बादलों की गरज, विद्युत की कौंध और झंझावात की विभिषिका अपनी पराकाष्ठा की सीमा स्पर्श कर रही थी तो दूर कहीं किसी नारी की करुण क्रंदन ध्वनि सो रहे एक दस वर्सीय बालक सुभाष के कानों में पड़ी। शुरू में तो उसे लगा कि शायद यह उसका वहम है परन्तु लगातार विलाप उसकी निंद्रा भंग कर चुकी थी। बहुत देर तक वह सोचता रहा कि कैसे वह इस गंभीर रुदन का पता लगाए। अगली बार जब उसे पुनः रोने की आवाज सुनाई