कुल का दिया

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मुझे रंजना दी के फोन से पता चला कि बुआ नहीं रहीं “मन्नो ने मार डाला, छोटी” ‘कब ? कैसे ?’ मैं चौंकी थी ‘कल शाम, ..चार बजे, ...मैं रात में ही यहाँ आ गई ....बाबू, मुन्ना, लता –सब सुबह आये ...तू कब तक आ पायेगी, छोटी ?’ कराहती हुई आवाज में रंजना दी ने पूछा मैं इस फ़ोन से भौचक हुई रिसीवर पकड़े खड़ी हूँ कुछ क्षण बाद होश आया, बस, दी, जो भी पहला साधन मिलेगा उसी से निकल आऊँगी ...मुंबई से इलाहाबाद ...चौबीस घंटे तो ट्रेन में ही लग जायेंगे, दी ’ एक एक शब्द को बटोरते हुए बस इतना बोल पाई मैं