मैं मुम्बई के अतीत की गलियों से गुज़र रही हूँ..... यहाँ गेटवे ऑफ़ इन्डिया और ताज महल की भव्यता और सजधज नहीं है फिर आँखें चकित क्यों हैं? कहाँ है मेरी मुम्बई ये तो हरे भरे जंगलों, खेतों और आदिवासियों से भरी कोई अनजानी जगह है यहाँ की दो जनजातियों से मैं रूबरू होती हूँ कोली और अगरिया जो ईसा पूर्व से यहाँ रहती आई हैं इनके वंशज मछुआरों और नमक बनाने वाले मज़दूरों के रूप में जाने जाते हैं यह वंश परम्परा आज भी कायम है