न जानें क्यों

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न जानें क्यों "प्रा जी अगर कोई प्रोब्लम न होवे तां, तुस्सी विंडो वाली सीट मैनूं दे सकदे हो।" उस स्मार्ट से सिख नौजवान ने पंजाबियत की जानी पहचानी खुशबू लिए भाषा में कहा तो बहुत प्रेम से था लेकिन फिर भी अनचाहे ही मैं अनमना सा हो गया। . . . . बात बहुत पुरानी है। करीब 25 वर्ष हो गए, लेकिन आज भी मैं वो वाक्या भूला नहीं हूँ। विवाह के बाद ये पहली बार था जब मैं पत्नी को लेकर बर्फीली वादियों में घूमने जा रहा था और उस दौर में नई–नई चली ‘डीलक्स वीडियो कोच बस’