पिता की अचानक हुई मृत्यु से मैं बहुत व्यथित हो गई । इस झटके को मैं काफी समय तक भूल नहीं पाई । यह सदमा आज भी मुझे सालता है । मेरी लेखनी आज अपने उस दर्द को व्यक्त कर अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करती हूं ।धन्यवाद ) ॥ स्मृति शेष…॥ अंत से अनंत तक दिग से दिगन्त तक ,अपने आस -पास ,फैला रहा मोह का मायाजाल । भ्रम के जाल में ,सब कुछ अपने पास में, आप थे हम थे ,सभी अपने खास थे। सब कुछ कहते रहे, दर्द सब सहते रहे, शुरू हो चुका था सफर इस धरा से अनंत का, कहते रहे कथा अनेक, उस जगत जननी मां