कैसे मोक्ष हो यहां....!

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कई सालों से अम्मा का मन था कि हम दोनों “गया” जायें और पापा का पिंडदान करके आयें. हर साल प्रोग्राम बनता, और फिर किसी न किसी कारण से टल जाता. इस बार मैने एक दिन बस यूं ही रेल्वे की साइट खोली और गया के रिज़र्वेशन देखने शुरु किये. सारी ट्रेनें फुल थीं. इलाहाबाद होके देखा तो मिल गया रिज़र्वेशन. आने-जाने दोनों का. रात में बैठ के बोध गया के होटल सर्च किये, और एक बढिया होटल में कमरा भी बुक हो गया.नियत समय पर हम सतना से इलाहाबाद पहुंच गये. आने वाली ट्रेन भी एक दम सही समय पर आ रही