“मैं भी तो नाम और हुलिया बदलकर जीते-जीते तंग आ चुकी हूँ” “जब आमिर खान, इमरान हाशमी जैसे नामी-गिरामी हस्तियों को अपने मजहब की वजह से मकान खरीदने में समस्या होती है तो ऐसे मुल्क में हम जैसे आम नागरिक अपने लिए ठिकाना कैसे जुटाएं ?” अगले कुछ महीनों में अतुल ने कोशिश करके अपना तबादला अहमदाबाद करवा लिया था, वहीं के जुहापुरा इलाके में उसने दलाल के मार्फ़त एक बिल्डर से बात की थी जिसने आज़ादी के समय सिन्ध से आए मुसलमानों, ईसाईयों और स्थानीय मुसलामानों की मिलीजुली रिहायशी कॉलोनी में एक मकान पक्का करवा दिया था हालांकि कॉलोनी अनाधिकारिक थी पर बिल्डर को उम्मीद थी कि आने वाले कुछ महीनों में वह कुछ न कुछ जुगाड़ बिठाके कॉलोनी को रजिस्टर्ड करवा ही लेगा