बिटिया थोड़ी बड़ी हो गयी है (अप्रैल २०१९)

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बिटिया थोड़ी बड़ी हो गयी है(अप्रैल २०१९)१.थोड़ा बड़ा कर दो राजनीतिकि ठंडी ,बेहद ठंडी  रातों मेंकिसान उसे ताप सकें।जवान उसे जी सकेंबेरोजगार उसे पा सकें,शिक्षा उसे माप सके।ओ राजनीति चक्रव्यूह न बनगीत का संगीत बन,राह की कीचड़ न बन।कहीं सड़क बना दे,कहीं बिजली जला दे,कहीं पेड़ लगा दे,कहीं विद्यालय खुला दे,अस्पताल की नींव सजा दे,देश पर प्रहार न कर,लोगों को विभक्त न कर।२.जिन्दगी कहाँ से कहाँ निकल जाती है,बिना पूछे,आवाज देती है,पूछो तो चुप रहती है।कहासुनी जो होती हैविचार-विमर्श जो रहता है,ज्ञान-विज्ञान जो चलता है,जिन्दगी के इर्दगिर्द नाचता है।प्यार का सपना बनता है,बनकर टूट जाता है,बातें छोटी-बड़ी होती हैं,और जिन्दगी