संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि (5) कविता मेरे सॅंग ही रहना..... कविता मेरे सॅंग ही रहना, अंतिम साथ निभाना । जहाँ-जहाँ मैं जाऊॅं कविते, वहाँ - वहाँ तुम आना । अन्तर्मन की गहराई में, गहरी डूब लगाना । सदगुण देख न तू भरमाना, दुर्गुण भी बतलाना । जब मैं बहकूँ तो ओ कविते, मुझको तू समझाना । पथ से विचलित हो जाऊॅं तो, पंथ मुझे दिखलाना । बोझिल मन जब हुआ हमारा, तू ही बनी सहारा । दुख में जब डूबा मन मेरा, तुमने उसे उबारा । मेरे सोये मन को जगाकर, कर्मठ मुझे बनाना । न्याय धर्म और सत्य