हवाओं से आगे - 18

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“अरे उतरो भी, 800 रुपए में कितनी देर रुकोगे ?” “फ़ोटो तो खिंचवाने दो हमें, एक-दो पल अधिक रुक गई तो कौनसा पहाड़ टूट पड़ेगा ?” “अरे... क्या करोगे जी फ़ोटो का ?” “यादें नहीं ले जायेंगे यहाँ से क्या ?” “यादें ? इन फ़ोटो में क्या इकठ्ठा हो पाएंगी जी...” वह बड़बड़ाता हुआ अपने चप्पू पर से पानी निथारने में लग गया था । उसके माथे पर शिकन बिलकुल भी अच्छी नहीं लग रही थी, मन किया उसके क़रीब जाकर अपनी हथेली उसके माथे पर फिरा दूं और उसके माथे की उन सिलवटों के साथ वे तमाम वजहें भी झटककर डल झील में गिरा दूं जिनकी वजहों से उसके मन में इतना गुस्सा भरा हुआ था किन्तु यकायक मन से आवाज़ आई...