आज भी मैं सूरज निकलने के बाद उठा और पिता जी की डांट पढ़ने का डर मन में लेकर उठा लेकिन वह दिन कोई त्योहार से कम नहीं लग रहा था l लेकिन मन में इतना उत्साह और उमंग पहले नहीं था, कारण क्या है पता नहीं l रोज की तरह उठा और मंजन करने के बाद पेपर पढ़ने की तलब लग गई लेकिन पेपर पिताजी के हाथ में था और इतनी भी शक्ति नहीं थी कि पिताजी से पेपर मांग सकूं और सुबह मुझे एक बार फिर आज इंतजार कितना कठिन होता है यह मालूम पड़ गया इधर-उधर घूमने के