“अच्छा... तो दिन में कितनी दफ़ा आप लोग मुझे फ़ोन करके मुझसे मेरे बारे में पूछते हो ? क्या कोई ये जानना भी जरूरी समझता है कि दिन भर में मैं कितना रोयी, कितना सोयी या मैंने खाना समय पर खाया कि नहीं और ये किसे मालूम की जो दवाइयाँ मेरी जीवन रेखाएँ बन चुकी हैं, क्या मैं उन्हें समय पर गटकती हूँ ?” “सिर्फ ये सवालात महत्वपूर्ण नहीं होते किसी की कद्र को जताने के लिए हम सब घर लौटते ही क्या सबसे पहले तुम्हें ही नहीं पुकारते ?” “हाँ... पुकारते हो सब मुझे ही, पर अपनी-अपनी ज़रूरतों के लिए, ना कि मुझसे मेरे बारे में पूछने के लिए ”