संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि - 4

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संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि (4) बरखा ने पाती लिखी, मेघों के नाम..... बरखा ने पाती लिखी, मेघों के नाम । जाने कब आओगे, मेरे घनश्याम ।। अॅंखियाँ निहारे हैं, रोज सुबह- शाम । उमस भरी गर्मी से, हो गए बदनाम ।। सूरज की गर्मी से, तपते मकान । बैरन दुपहरिया ने, हर लीन्हें प्रान । लू के थपेड़ों से, हो गए हैरान । सूने से गली कूचे, हो गए शमशान ।। श्रम का सिपाही भी, कहे हाय राम । हर घर में मचा है, भारी कोहराम ।। नदियाँ सब सूख कर, बन गयीं मैदान । हरे भरे वृक्षों ने,