'जी! क्या मैं इस सीट पर बैठ सकता हूँ?' केदार बाबू ने बगल बाली सीट पर बैठी महिला से कहा, पर महिला बस की खिड़की से बहार के नजारे देखने में इस तरह खोई हुई थी कि उसे केदार बाबू की बात सुनाई ही नही पड़ी तो केदार बाबू ने उस से फिर पूछा 'जी! मैने कहा क्या मैं इस सीट पर बैठ सकता हूँ?' महिला ने जैसे ही पलट कर केदार बाबू कि ओर देखा तो दोनों एक दूसरे को देखते ही रह गए, क्योकि ये महिला कोई और नही बल्कि कुसुम थी वो कुसुम जिसके साथ जीने मरने