संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि - 2

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संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि (2) जब-जब श्रद्धा विश्वासों पर ..... जब - जब श्रद्धा विश्वासों पर, अपनों ने प्रतिघात किया । तब - तब कोमल मन यह मेरा, आहत हो बेजार हुआ । मैं तो प्रतिक्षण चिंतित रहता, सुख- सुविधा की छाँव दिलाने । मनुहारों की थपकी देकर, अनुरागों के गीत सुनाने । जब -जब नेह भरी सरगम में, चाहा हिल-मिल राग अलापें । तब -तब मेरे मीत रूठ कर, मेरे दुख में खुशियाँ मापें । समझौतों की दीवारों से, कितने मकां बनाये हमने । पल दो पल की खुशियाँ देकर, लगे वही सब हमको ठगने । हर आशा