अभिषेक, किताबों में डूबने की पुरजोर कोशिश करता पर कहाँ मिल पाती कामयाबी? मन भटकता रहता और वह किताबें छोड़ कोई रेकॉर्ड लगाने लगता. दो मिनट भी नहीं सुनता कि खीझ होने लगती. सोचता छत पर टहलना ठीक रहेगा. पर वहाँ मन इतना बेचैन और परेशान हो जाता कि वापस कमरे में आ किताबें उठा लेता और जोर जोर से बोल बोल कर पढना शुरू कर देता. यह भी ज्यादा देर नहीं चल पाता और पढ़ते पढ़ते किताब एक तरफ फेंक देता मानो खुद से लड़ते लड़ते हार गया हो जैसे और फिर जाने कब तक उसके चेहरे को धोती बूँदें, फर्श भिगोती रहतीं.