गृह प्रवेश करते हुए शिखा का दिल कच्चा सा हो रहा था । जल्दबाजी में सिलाए गए ब्लाउज में वह बहुत असहज महसूस कर रही थी। साड़ी भी बहुत भारी थी, एक तो साड़ी पहने की आदत नहीं और जब पहनी तो इतनी भारी की लटकी जा रही थी। गर्मी के कारण पसीना पसीना हो रही थी । सुबह से कुछ खाया भी नहीं था पित्त से बन रहे थे । उसे लग रहा था घर में और भी रस्में करनी होंगी, कैसे कर पाएगी। शालिनी उसकी हालत समझ रही थी लेकिन सुषमा से बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। लड़की अब पराई लगने लगी थी, जैसे उसका शिखा पर कोई हक नहीं रह गया था।