रूम

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सुबह के नौ बजे होंगे। छुट्टी का दिन था। फ़ोन की घंटी बजी। अंजान नंबर था। उठाया तो देखा उस तरफ कोई सौहाद्र था। कोई खास जानता नहीं था उसे, मुझे तो याद भी नहीं था, उसी ने याद दिलाया कि दो साल पहले मैंने इतिहास का एक कोर्स पढ़ाया था उसके क्लास में। "तब से आपका प्रशंसक रहा हूँ।" आगे बोला... "सर एक बहुत जरूरी काम था आपसे। क्या आपसे घर आके मिल सकता हूँ..." छुट्टी का दिन था। वैसे तो बोर हीं हो रहा था मैं। फिर भी कहा... "परसों तो यूनिवर्सिटी खुल हीं रही है, वहीं आ