आज गया था वहां जहाँ कभी मैंने अपने नन्हे पाव रखें थे जमी पर ,जहां कभी लहरातें खेत-खलीयान मे छोटी सी चार पाई पर सोया था कभी ,अपने आँखों उस आसु को रोक नहीं पाया जब मैने उन खेतो को देखा अपनी वीरानीया व अपनी वियोग -गाथा बया करते,मैं ने अपने मित्र जो बडी ही सादगी औंर विनम्रता से एक स्थान पर खडा अपनी बैचेनी बया कर रहा था कि कब मैं आऊँगा और उसे गले लगाऊंगा, मुझसे वो कुछ बोल नहीं सकता पर हम दोनो एक दूसरे की भावनाओं को जरूर समक्ष पाते है, जब मे अपनी जमीन पर