पिता जी सूर्या जीजी के लिए नहीं रोये थे

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“पिता जी सूर्या जीजी के लिए नहीं रोये थे”कड़कड़ाती सर्दी भरी रात का लगभग दस बजा होगा, पिता जी अभी इलाहाबाद से लौटे नहीं थे । माँ हमेशा की तरह उनके इंतज़ार में जाग रही थीं । अलाव सामने रखकर रज़ाई में बैठी - बैठी वीर भैया का स्वेटर बुन रही थीं । अचानक याद आया कि तुलसी को ओढ़नी ओढ़ाना तो भूल ही गईं । तुलसी की ओढ़नी वो स्वयं ही धोतीं, सुखातीं और ओढ़ातीं, हटातीं, किसी को उसे छूने की इजाजत नहीं थी । पाला एक ही रात में उसकी नरम - नरम पत्तियों को झुलसा डालेगा